कभी चुलबुल तो कभी मुझसे नाराज़ रहती मेरी जिंदगी, कभी खुशियों का गुलिस्तां तो कभी मेरे गमों का रेगिस्तान है ज़िंदगी, कभी आशाओं की धूप तो कभी मायूसी की छांव है मेरी ज़िंदगी, कभी जश्न मनाती तो कभी विरान रहती है मेरी ज़िंदगी, कभी उम्मीद का उगता सूरज तो कभी निराशा भारी शाम है मेरी ज़िंदगी, कभी अनचाही जीत तो कभी स्वीकारी हुई हार है मेरी ज़िंदगी, बड़ी खुबसूरत है मगर बड़ी आम है मेरी ज़िंदगी, कभी हवा सी बहती ख्यालों के आस्मां में मेरे तो कभी हकीक़त की जमीं पर खड़ी अल्पविराम है मेरी ज़िंदगी, कभी रहस्यों का जमघट तो कभी खुली किताब है मेरी ज़िंदगी, कभी मेरे अस्तीत्व के पहचान तो कभी हैरां परेशां गुमनाम सी रहती है मेरी ज़िंदगी, कभी धिकारती तो कभी मुझे प्यार से गले लगाती है मेरी ज़िंदगी, कभी हंसता खेलता हुआ मकान तो कभी उजड़ी हुई मशान है मेरी ज़िंदगी, कभी गुजरा हुआ कल तो कभी बदला हुआ आज है मेरी ज़िंदगी, कभी सोचा समझा कल तो कभी बस एक अनजाना अनुमान है मेरी ज़िंदगी, कभी जीती जागती हस्ती तो कभी मिट्टी में दफ़न बस एक लाश है मेरी ज़िंदगी।