दिल रोता क्यों है
दिल रोता क्यों है,
बेचैन होकर चैन ये
अपना खोता ही क्यों है,
जब ज़ाहिर नहीं कर सकता
जज़्बातों को अपने तो ये अपने
अंदर उनको सहेजकर रखता
ही क्यों है,
कहता नहीं कुछ भी पर रातों
को उठ उठकर अक्सर ये मुझसे
झगड़ता ही क्यों है,
जब सह नहीं सकता दर्द जुदाई
का तो ये हर किसी पराए को
समझता अपना सा क्यों है,
बहुत नादां है दिल ये मेरा पर
लगता मुझे कभी कभी ये बड़ा
ज्ञानी सा क्यों है,
सोचे समझे बिना करने लगता है
मोहोब्बत पर जब टूटता है तो
बच्चों की तरह लिपटकर मुझसे
ये बावरां दिल मेरा रोते रोते बातें
करता ही क्यों है,
दिल तो मेरा है फिर भी मुझे
कभी कभी लगता ये पराया
सा क्यों है,
समझाता हूं इसको तो
समझता ही नहीं फिर पूछता है
मेरे ही साथ ऐसा होता क्यों है,...
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