तुम्हें फ़ुर्सत नहीं होती,

तुम्हें फ़ुर्सत नहीं होती मुस्कुराने की 
तो क्यूं मुझको मुस्कान बनकर तुम्हारे 
हसीन होंठों पर थिरकना पड़ता है, 

मशरूफ रहते हो इतना की भूल जाते 
हो खुदको फिर मुझको क्यूं बनकर आईना 
तुम्हें तुम्हारा अस्तित्व दिखाना पड़ता है, 

कभी कभी मुझको भी अपना वजूद 
तुमको ज़िंदगी में तुम्हारी क्यूं याद 
दिलाना पड़ता है....

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