Posts

Showing posts from January, 2024

अजीब सिलसिला,

अजीब सिलसिला है दरमियां हमारे ए अजनबी शिकायतें भी बहुत है और बेइंतेहा मोहब्बत भी। 

किस-किस,

किस-किस से छुपाए तुम्हें हम ए हमसफर मेरी आंखों से रूह तक बस तुम ही तुम हो...

मदहोश,

मदहोश करती है मुझको मौजूदगी तुम्हारी मोहब्बत भरा ये दिल मुझसे संभलता नहीं।

जज़्बात बयां करते हैं,

जज़्बात बयां करते हैं अल्फ़ाज़ों में छुपी हर बात उनकी ख़ामोशी में कई राज़ गेहरे है अभी

उनकी,

उनकी गुस्ताख निगाहों ने तब्लीग़ ही कुछ यू की सोचे समझे बिना मैं ईमान महोब्बत पर ले आया

जेहेन में

जेहेन में झूठी वफ़ाओ का अलाप जलने दो अरसा गुज़र गया पलकों को भीगते भीगते। 

इतना भी न,

इतना भी न रूठो   तुम हमसे ए हमसफर, हर लम्हा हमें पराया सा लगने लगता है।

मंज़िले,

मंज़िलें कभी फ़ांसलो से तय नहीं होती जनाब रास्तों पर अक्सर टूटकर बिखरना भी पड़ता है। 

ख़ामोश पलकों,

ख़ामोश पलकों से बेहताशा मुस्कुराता है वो छलकती आँखों से दर्द कभी बयां नहीं होता

खुशियोँ भरा,

खुशियोँ भरा सफ़र देख फ़ासले भी मुस्कुराने लगे रोशन क्यूं है रास्ते नज़दीकियों का दौर है ग़ालिब...