ज़रा सा वक़्त माँगा था
ज़रा सा वक़्त माँगा था तुमसे ऐ खुदा जब सांसों की रेत फिसलने लगी हाथों से मेरे, पुकारता रहा तड़प तड़प कर हर अजनबी को, मुझको लावारिस समझकर अनदेखा कर रास्ते से गुजरता गया हर शख्स, मांगता रहा ज़िंदगी हरपल दुआ खुदा से करता रहा जब रूह जिस्म से मेरे निकलने लगी, देखकर मुझको इस हालत में मेरा अहम भी मुझपर हसने लगा, कहने लगा क्यों ढूंढता है इंसानियत को इस बैगैरत दुनियां में होती मौजूद अगर तो खुद ब खुद कोई तेरा हाथ थाम लेता....
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