हे मानस

हे मानस अगर तू यूंही प्रकृति के वन उपवन को नष्ट करता रहेगा तो वो दिन दूर नही जब तुझे अपनी करनी का पश्चाताप होगा। कभी कद्र नहीं की जो इस प्रकृति ने तुम्हे बेहिसाब दिया संभाल जाओ अभी भी वक्त है। नही तो अभी कई और सैलाब आने को हैं नज़रंदाज़ न करो कुदरत के इशारों को क्योंकि तुम जैसे पापियों के लिए श्री कृष्ण दुबारा अवतरित नही होंगे, जो कुछ मिला इस प्रकृति से अब सब इसी में मिल जाने को सज्य है। प्रकृति को तुम्हारी ज़रूरत है आओ सब मिलकर प्रण ले की अपनी धरती की संपदा को यूंही बनाए रखेंगे और हमेशा इसकी अहमियत को समझेंगे। 

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