समुंदर के सफ़र पर,
समुंदर के सफ़र पर जब हम अपने हौसलों की कश्ती में होकर सवार निकले, बनाकर कल्पनाओं को हक़ीक़त हम टकराने अपनी खुदी से उस पार निकले, धकेलती रहीं लहरे भी कश्ती को हमारी और हम हर दफा लड़ते झगड़ते अपने डर के तूफानों से बाहर निकले, थर्राने लगा भय से आसमां सारा जब हम नौजवानों के जज़्बों को देख पसीने उसके बार बार निकले, छटने लगे दुखों के बादल आहिस्ता आहिस्ता जहन से हमारे तब हम लेकर अपने ख्वाबों के सूरज को हथेली पर अपनी रोशन करने पूरा जहान निकले, हराकर समुंदर को सम्पूर्ण साहस से अपने हम लहराते हुए अपनी जीत का परचम उसकी सर जमीं पर, लांघ समुंदर की विशाल नगरी को छोटे छोटे पगो से अपने सफ़र से अपने अचानक हम निकल आये...
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