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Showing posts from May, 2021

कभी हम भी बहुत,

कभी हम भी बहुत काम के हुआ करते थे, जबसे इश्क़ हुआ है तुमसे तबसे इश्क़ करना, तुम्हें मेरे लिए इबादत सी हो गई है....

अपनी सोच को,

अपनी सोच को लफ्जों में कैद करना चाहते हैं, पर लफ्जों का क्या है कभी साथ देते हैं कभी नही, एक हम हैं जो फुर्सत में बार बार तुम्हे याद करके, लिखने बैठ जाया करते है....

आहिस्ता आहिस्ता मिली मेरी नज़र उनसे,

आहिस्ता आहिस्ता मिली मेरी नज़र उनसे, वो दिल में उतर गए कब उनके कैदी बन गए, उनकी मदहोश नज़रों ने होश में आने ही ना दिया...

खुदा सलामत रखे,

खुदा सलामत रखे उसे जिसने चलना सिखाया मुझे ठोकरें लगने के बाद, अपना प्यार लुटाया हमेशा हजारों मेरी गलतियों के बाद, पूरी रात ना सोई मुझको चोट लगने के बाद, खुद को रखा भूखा मुझको पेट भर खिलाने के बाद, खुशियां लूटा दी मुझपर अपने हिस्से की सारी मेरे दुख अपने आंचल में समेटने के बाद, तपती रही सूरज की गर्मी में मेरे सपनों को संजोने के बाद, खुदा सलामत रखे उसे जिसकी वजह से वजूद है मेरा इस दुनियां में आने के बाद...

कैद कर लूंगा,

कैद कर लूंगा तुझे अपनी इन आंखों में, जुड़े रहोगे मुझसे मेरी सांसों की तरह, सुन सकोगे हर धड़कन में अपना नाम, आयत की तरह...

हसरते अधूरी थी,

हसरते अधूरी थी अधूरे थे हम, पर जबसे तेरे तलबगार हुए हैं, ना बची कोई हसरत तेरे दीदार, के सिवा...

ज़िंदगी गुज़र रही है,

ज़िंदगी गुज़र रही है साथ अपनो के एक  छोटे से आशियाने में खुदा सलामत रखे  हर किसी को बस यही गुज़ारिश है,  अल्फाज़ नही मिलते हाल ए दिल बयां  करने को लौटेंगे वो खुशी के पल जिसको याद कर हम अपने इस दिल को समझाते है, बस उम्मीद कायम रखना यही गुज़ारिश है खूब बातें होंगी जब मिलना एक दूसरे से होगा गिला शिकवे भी होंगे और किसी ने खोया कोई  अपना खास भी होगा, इत्मीनान रखिएगा बस यही गुज़ारिश है सफ़र थोड़ा लम्बा कटने को है बस अपनी ख्वाइशों को बचा के रखना यही गुज़ारिश है.....

ज़िंदगी कैद है आज,

ज़िंदगी कैद है आज अपने ही आशियानों में  मौत देख रही है रास्ता सड़को और बाजारों में  तड़प रही है ज़िंदगी सड़को और दवाखानो में,  मरकर भी इंसा लगा हुआ है शमशान की कतारों में रोकना है तो रोक लो सांसों की काला बाज़ारी को हार चुकी है ज़िंदगी लड़ते लड़ते इन हालातों से, खत्म हो रहा है मासूमों का बचपन घरों की चार  दिवारी में तो कहीं भटक रहा है पैदल पैदल नंगे  पांव भूखा और प्यासा तपती धूप के फुहारों में, दौड़ रहा है बेरोजगार तालाश ए रोजगारों तक देना है तो एक दूसरे का साथ दो तुम ना सही  साथ खड़े तो कम से कम उनकी आवाज़ बनो,   जरिया ही बनजाओ किसी तरह से ज़िंदगी किसी की बच जायेगी कहीं तो इंसानियत आगे आयेगी क्या होगा जब न लौटेगा वो बूढ़ी आंखों का सहारा क्या होगा उन बिन मां बाप के अनाथों का कौन बनेगा उनका सहारा किस तरह जी पायेंगे वो बिना सहारे के अब समय है अपनो के पास रहो काम में खुश और थोड़े में आबाद रहो....

इंसान कर हौंसले अपने बुलंद तू ,

इंसान कर हौंसले अपने बुलंद तू  कर गुजर ज़िंदगी में ऐसा काम तू,  ज़िंदगी बचा सके किसी एक की भी कर उस शख़्स को सलाम तू,  वक्त बुरा है गुज़र जायेगा मिला अनजान के हाथ से अपना हाथ तू,  ज़िंदगी मिलती है बड़ी मुश्किल से  यूं ना बैर कर ज़िंदगी कर खराब तू, भूलाकर सब रंजिशे और धर्म को  अपने आ इंसानियत के काम तू,  रोकले किसी के घर का चिराग बुझने  से कर मासूम जिंदगियों को आबाद तू,  जो छोड़ गए अपने पीछे कुछ जिंदगियो को बेसहारा बनकर उन सबका सहारा,  दे इंसानियत को एक नया नाम तू वक्त बुरा  है गुजर जाएगा आ इंसानियत के काम तू, लड़ रहे हैं जो दिन रात इस कहर से  कुर्बानी को उनकी तू न जाया कर, वक्त बुरा है गुजर जाएगा खड़ा रह  अपनो और हर अनजान के साथ तू...

मोहोब्बत को समझना,

मोहोब्बत को समझना किसी शख़्स के बस की बात नहीं, अक्सर उम्र बीत जाया करती है किसी के इंतज़ार में.....

अदाओं में ना जाने,

अदाओं में ना जाने कैसी कशिश है उनकी, वहीं ठहर जाता हूं जहां से शुरूआत करता हूं...