चुराकर नज़रों को मुझसे,
चुराकर नज़रों को मुझसे
ए हमसफर मेरे तुम कहां
जा रहे हो,
जाते जाते तुम ज़िंदगी से मेरी
संग अपने सुकून ज़िंदगी का
लिए जा रहे हो,
जुदा करके मुझको ख़ुदसे
क्यूं तुम आंखों में मेरी बहता
आंसूओं का साहिल छोड़कर
जा रहे हो,
रहेगी खुशबू तुम्हारी सांसों
की मेरी सांसों में सदा होंठों
से अपने जिसको होंठों पर
मेरे सजा रहे हो,
महकता रहेगा मेरा जीवन
मोहोब्बत से तुम्हारी छाप
जिसपर अपनी रूह की तुम
छोड़े जा रहे हो,
मिलेगा फूल खिलखिलाता
हुआ तुम्हें तुम्हारी यादों का
जिसको तुम मेरी दिल की
ज़मीं पर रोंप के जा रहे हो,
मिलूंगा अक्सर मैं पहचान
बनकर तुम्हारी मुझसे नज़रे
चुराकर क्यूं जा रहे हो,
पूरा होगा सफ़र अपना
जिसको तुम बीच में अधूरा
छोड़कर जा रहे हो,
परछाई समझता था मैं खुदको
तुम्हारी पर अब तो तुम मुझसे
ही मुंह फेरकर जा रहे हो,
चुराकर नज़रों को मुझसे
ए हमसफर मेरे तुम दर्द
उम्रभर का मुझे देकर जा
रहे हो.....
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