मेरा प्यासा जीवन,

मेरा प्यासा जीवन मुझे खींचता रहता है मेरे अभिलाषाओं के सागर की ओर, जहां पर कोसों कोसों दूर तक जमीं दिखती नहीं, जिसको देखकर मेरी कल्पनाओं की धारा कभी भी रुकती नहीं, मदहोश हो जाता हूं अपने सपनों के शहर में जिसके सौंदर्य को देखते देखते आँखें मेरी कभी थकती नहीं, ले आता हूं कुछ यादें वहां से पर क्या करूं वो यहां बिकती नहीं, मायूस हो जाता हूं हर दफा जब मेरी खुशियां पलभर भी हथेली पर मेरी टिकती नहीं, बेचैन होने लगता हूं जब मुझे मेरी मंज़िल दिखती नहीं, बंजर सी दिखने लगी है शख्सीयत मेरी जो कभी बसंत में भी खिलती नहीं, टूट कर बिखरने लगा है अब तो जीवन मेरा जो लाख़ प्रयत्नों के बाद भी मुझमें सिमटता नहीं, बूंद बूंद करके खाली होने लगा है सागर अभिलाषाओं का मेरा एक कंबख्त मेरा जीवन है जिसकी अभिलाषा की प्यास कभी बुझती नहीं...

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