झगड़ने लगा है वजूद,

झगड़ने लगा है वजूद 
मेरा मुझसे कहता है पथ से तुम 
अपने भटकते जा रहे हो, 

दिखाई देती है जितनी ज़मीं 
तुम्हें कदमों के नीचे तुम्हारे
हर लम्हा तुम उसमें धंसते जा
रहे हो,

होगा पूरा हर ख़्वाब तेरा
और तेरी ज़िंदगी का किसी दिन
फिर क्यूं मायूस होकर इनको
जहन में अपने दफना रहे हो,

बदलेगी क़िस्मत तेरी भी एक दिन 
फिर क्यूं ख्वाइशों को अपनी लिख 
लिखकर मिटा रहे हो,

बहने लगो तुम कल्पनाओं में
अपनी क्यूं तुम ख़ुद ही ख़ुद में
सिमटते जा रहे हो,

टकराने दे अपने हौंसलों की
कश्ती को समुंदर की लहरों से
डूबने के डर से क्यूं घबरा 
रहे हो,

उड़ने दे तू खुदको आसमां में 
अपने क्यूं खुदको दुखों से भरे
पिंजरे में कैद किए जा रहे हो,

भेदों जीवन के लक्ष्यों को अपने
मेहनत से अपनी जीतने से पहले 
हार का मातम क्यूं मना रहे हो,

निराश होकर जीवन में हालातों से 
अपने उम्मीद की सोच का दायरा 
क्यूं बेवजह घटाए जा रहे हो,

कहता है वजूद मेरा मुझसे 
ज़िंदगी जीने के लिए है तुम्हारी 
फिर क्यूं तुम इसे व्यर्थ के कामों
में बर्बाद किए जा रहे हो,

झगड़ने लगा है वजूद मेरा मुझसे 
कहता है मैं हूं तुम कहीं अभी भी
बाकी तुम मुझे क्यूं नज़रंदाज़ किए
जा रहे हो.......

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