दुनिया रोज़ नई लगती है,
दुनिया रोज़ नई लगती है देखता हूं जब्भी इसको तो हमेशा मुझे कुछ बदली बदली सी दिखती है। समेटे हुए हैं कई राज़ इसने अपने जेहन में जिनको वो अपने भीतर ही रखती है। सभी को दिखाई नही देती इसकी सुंदरता आसानी से ये तो बस हवा है जो अपनी ख्वाइशों का चश्मा लगाने वाले को ही दिखती है। ये वो कोरी किताब है जो क़िस्मत वालों को ही पढ़ने को मिलती है। ज़रा नई नई आँखों से देखो तो इसको जब भी देखोगे तो एक नई पहेली सी लगती है।
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