छूने लगा जो गऊ को

छूने लगा जो गऊ को
तो मुझसे मिलने धर्म के 
पहरेदार आ गए,

धर्म क्या है मेरा मुझसे
पूछने ये सवाल एक नहीं
हज़र आ गए,

समझता था मैं एक इंसान 
खुदको पर मेरा ये भ्रम तोड़ने
सब लोग घर से अपने बाहर
आ गए,

पहचान क्या है मेरी
बातों ही बातों में मुझसे
बूझने बड़े बड़े पत्रकार
आ गए,

फिर खाखोड़ने मुझको 
मुझमें काफ़ी समय बाद
उनके फौजदार आ गए,

मिला नहीं जब कुछ भी 
उन्हें तो मुझमें मेरा खुदा
तराशने धर्म के जाने माने
सुनार बेशुमार आ गए,

लड़ता रहा अकेला सभी से 
खुदको गुनेहगार सा मेहसूस 
करने लगा जब लड़ने मुझसे 
राम के भेष में रावण के कई 
अवतार आ गए,

चला था आशीर्वाद लेने गऊ
माता का पर ना जाने कहां से
मुझे समझाने के लिए उन्में
दुनियां भर के संस्कार आ गए.....


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