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Showing posts from May, 2022

हार,

कुछ इस क़दर हार चुके है खुदको हम मोहोब्बत में उनकी की जब्से मांगा है उनको दूआओं में तबसे अपने ही खुदा के कर्ज़दार हो गए हैं...

मेरा पेशा,

मेरा पेशा हुआ तो क्या हुआ जब्से मां की कोख में हूं तब्से  अबतक बदनाम हूं मैं, कहने को तो समाज का हिस्सा हूं पर मुझको मिलता ही नहीं मेरा  ओदा कभी जिसकी हकदार हूं मैं,  भूल जाती है ये दुनियां मुझ जैसे  हजारों को जन्म देकर कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे अपनी ही ज़िंदगी में जीता जागता एक अल्पविराम हूं मैं...

पर्दा,

अपनी ख्वाईश ए मोहोब्बत को तुम पर्दे में ही रहने दो ए हसीं, तुम्हारी खामोशियां ही बहुत है मुझको बेचैन करने के लिए...

कांटे,

जब्भी छुआ मेरी रूह को उस शख्स ने तो एहसास ए घाव रह गया, कहां जानते थे हम कि उनकी चाहत ए मोहोब्बत में कांटे हज़ार होंगे...

इंतज़ार,

फ़ुरसत ए इंतज़ार में खड़ा हूं अपनी खवाईश ए मोहोब्बत को लेकर राहों में उनकी, वो बात और है की हमने उनको इश्क़ की गलियों से कभी गुजरते नहीं देखा...

मां मेरी एक तख्ती है,

मां मेरी एक तख्ती है रोज़ कोरे जीवन पर मेरे अपनी अच्छी अच्छी बातों को लिखती है, दिनभर रखती ख्याल सभी का ज़रा सा भी उफ़ नहीं करती है, रहती है मुस्कान सदा चेहरे पर उसके ख्वाइशों को अपनी रात के अंधेरे में चोरी चुपके सिलती है, बेचैन हो जाती है मेरी ये आँखें जब पलभर भी मुझको मेरी मां नहीं दिखती है, कभी कभी तो मेरी प्यारी मां मेरी बेतुकी बातो पर भी दिल खोल के हंसती है, हे ईश्वर तू रखना सलामत हमेशा मां को मेरी क्यूंकि उसके ममता के आंचल में मेरे अंगिनत सपनों की टोली बस्ती है।

आगोश,

अक्सर लेकर मुझको आगोश में अपने वो सवाल हजार करते हैं, हर दफां छोटी छोटी तकरार ए मोहोब्बत को वो अपनी बेइंतहा प्यार कहते है...

तुम्हारे इश्क़,

तुम्हारे इश्क़ की परछाई ने महफूज़ रखा है अबतक मुझे वरना ऐसा कोई पल नहीं जिसमें हम टूटकर बिखरे ना हो...

लेकर,

लेकर चिराग़ ए मोहोब्बत वो मेरी ज़िंदगी में अपना वजूद तलाशते रहते है, अब उन्हें कैसे बताऊं ये अंधेरा मुझे मेरी ज़िंदगी में अच्छा लगने लगा है...

खुदा से,

फ़रियाद में खुदा से ज़रा सी मोहोब्बत उनकी क्या मांग ली हमने, तमाम सुकून गवां बैठे हम उनकी हसीं यादों से सौदा करते करते...

मोहोब्बत ए इश्क़,

तुम्हारे मोहोब्बत ए इश्क़ ने मेरा सारा सुकून चुरा लिया आजकल हम दीवानों की तरह आईने से बात करते है...

मेरी चाहत,

मेरी चाहत ए अमन की तलाश ने मुझको काफ़िर बना दिया, जोभी बेइंतेहा सुकून था ज़िंदगी में मेरी आज एक शख्स पर हमने वो भी लुटा दिया...

मुश्किल,

मुश्किल होता है दर्द ए ख़ामोशी को अपने होंटो पर सजा पाना ओ दिलबर मेरे, कभी कभी तो हस्ते हस्ते मोहोब्बत छलक आती है इन आंखों में मेरी...

शाम,

शाम ए तन्हाई मेरी इन आँखों में किसकी तलाश है तुझे इक अरसा बीत गया मैंने खुदकी परछाई को नहीं देखा...

मेरी ज़िंदगी,

मेरी सुकून ए ज़िंदगी की एक बेहद खुशनुमा आस हो तुम खुदा ने जिसको लिखा ही नहीं क़िस्मत में मेरी वो एक अधूरा काश हो तुम!!

सजदा,

सजदा ए मोहोब्बत कभी उन्हें मेरी याद आती ही नहीं वो बात और है की मेरी हर मुलाक़ात ए फ़रियाद में खुदा से जिक्र उन्हीं का होता है...

सपनों,

सपनों के पीछे भागना क्यूं जब हिम्मत ए हौंसला तेरे पास है, सफलता चूमेगी कदम तेरे एक दिन तू बस आसमां को छुने की ख्वाईश तो कर...

वादा,

वादा ए मोहोब्बत हमारी पहली मुलाक़ात आज भी याद है उन्हें, जानें क्यूं इंतज़ार ए वक्त गुजरता ही नहीं जब उनकी हसीं यादों में डूब जाता हूं मैं....

वक्त,

वक्त गुज़र जाता है पर उनकी याद ए मोहोब्बत लौट आती जेहन में, कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे वो मुझमें बाकी है कहीं...

चांद,

लेकर सौगात ए मोहोब्बत तोहफ़े में उनकी देखो आज मेरी दिल की जमीं पर चांद आया है, खुदा का शुक्र है की आज भी मेरी कुछ गुस्ताखियां से मोहोब्बत है उनको ...

तबस्सुम,

हसरतो की महफ़िल लग जाती है दिल में मेरे जब दीदार ए तबस्सुम होता है तुम्हारा ए हसीं, खो जाता है ये पागल दिल मेरा तसव्वुर ए खवाईश में तुम्हारी रह जाता है तो बस एक हसीन यादों का कारवां....

ज़मीन,

हक़ीक़त ए ज़मीन पर बेइंतेहा दर्द लिए अपनी आंखों में मुस्कुरा रहा है कोई, देखकर ऐसा लगता है जैसे उसका भरोसा ए यकीं अब्तक कायम है तुझपर ए खुदा...

सन्नाटे,

ये सन्नाटे मेरे ख़ामोश दिल की जमीं पर दास्तां ए इश्क़ बयां करते है, और एक हम है जो अपने ख्वाबों में उस अजनबी शख्स का वजूद तलाशते रहते है....

उल्फत,

उल्फत ए मोहोब्बत का शौकीन है ये पागल दिल मेरा बेजुबा है पर जब टूटकर बिखरता है तो बहुत ही शोर करता है...

बेड़ियां,

ये बेड़ियां चाहत ए मोहोब्बत तुम्हारी मुझको तेरे क़रीब ले आती है और एक हम है जो आईने में अपना ही अक्स देखकर मुस्कुराने लगते है...

चिट्ठियां,

कभी चिट्ठियां तो कभी उल्फत ए याद मोहोब्बत तुम्हारी अक्सर मुझको बेचैन कर जाती है ए हसीं, कभी कभी तो ऐसा लगता है की मैं कोई आशिक़ नहीं बल्की कर्ज़दार हूं तुम्हारा...

पंख,

हौंसलो को पंख लगा कर ख्वाइशों के आसमां में उड़ता ही रहा, क्यूंकि अक्सर हकीक़त ए जमीं पर ज़िंदगी को रोज़ लड़ते झगड़ते देखा मैंने...

ऋतु,

आज ये ऋतु इतनी सुहानी क्यूं है  हर लम्हा मेरी इन आंखों से बरसता पानी क्यूं है,  ए खुदा इतनी दूरियां क्यूं है दर्मियां उनके और हमारे  दास्तां ए मोहोब्बत में बस एक येहि खराबी क्यूं है...

बादल,

बादल बरसा पंछी चेह चाहने लगे देखा बारिश को और तुम याद आने लगे भीगने लगा तन बदन मेरा बेइंतेहा चाहत की बूंदों में तुम्हारी जब तुम सांसों से भी  ज्यादा मेरे करीब आने लगे...

मरहम,

जब्से अपने टूटे दिल को मरहम लगाया है ए खुदा तकलीफ़ बढ़ गई मेरी ज़िंदगी ए सुकून की तलाश करते करते...

मेरा क्या,

क्या अच्छा है क्या बुरा मैं कुछ जानता नहीं इसका फ़ैसला अपने रब्ब पर छोड़ दिया मैंने...

ईद मुबारक,

फलक से उतर आया है चांद भी जमीं पर ए खुदा करके दीदार ईद ए चांद ये रात आज फिर जवां हो गई...

बंजर,

चाहतों का पंछी मेरे दिल की बंजर जमीं पर नज़र आने लगा, ए खुदा ऐसा लगता है जैसे की चिराग़ ए मोहोब्बत लेकर मुझे  तलाशने आया है कोई...

हां मैं प्रवासी हूं जानू न,

हां मैं प्रवासी हूं जानू न कौन देश का वासी हूं, मक़सद ज़िंदगी का मेरी सिर्फ़ अपनी मंज़िल तक चलकर जाना है, रखता हूं बुनियाद किसी के सपनों की तो किसी के सपनो का संसार को रोज़ बदलता हूं, जब पिस्ता हूं हर दिन कड़ी धूप में पेट अपना भर पाता हूं, जिस दिन नहीं मिलता काम कोई तो भूखा ही सो जाता हूं, इस दुनियां में भला मुझको इंसान कौन समझता है ज़रा सी गलती पर मेरी जात को कोसने लगता है, काम मेहनत का करता हूं पर मेरी ज़िंदगी सस्ती क्यूं लगती है महंगाई की मार मुझपर ही क्यों पड़ती है...