Posts

Showing posts from June, 2022

धुन,

धुन ज़िन्दगी की अक्सर गुनगुनाता हूं मैं  बेचैन दिल को अपने राहत दिलाता हूं मैं,  भूल जाता हूं तमाम दुख दर्द अपना जब  कभी अधूरी हसरतो की महफ़िल सजाता हूं मैं,  खड़ा रहता हूं साथ अपनी ज़िंदगी के सदा जीवन के हर एक पहलू को बखूबी समझाता हूँ मैं, फ़िरभी हर दफ़ा लड़ते झगड़ते हुए  खुदसे ही हर मर्तबा हार जाता हूं मैं...

Fact,

हमारा आज कितना भी अच्छा क्यूं ना हो  आने वाले कल हमेशा शिकायत करता है

सुविचार,

हमारा आज कितना भी अच्छा क्यूं ना हो परंतु हमारा आने वाला कल सदैव उसकी निंदा ही करता है...

तुम्हारी चाहतों,

तेरी चाहतों की बारिश में मैं जब भीग जाता हूं अंगिनत ख्वाइशे उमड़ने लगती है दिल में मेरे...

दर्द के प्यालों,

"दर्द के प्यालों से दो बूंद इश्क़ क्या चुरा लिया हमनें बेइंतेहा मोहोब्बत छलकने लगी बेचैन आँखों से हमारी..."

साहिल,

उनकी चाहतों के साहिल में एक दिन डूब जाना है मेरी कश्ती को अब किसी किनारे की तलाश नहीं...

ए खुदा,

ए खुदा मेरी रगो में इंसानियत को यूंही बरक़रार रखना, बस एक कतरा ही काफ़ी है किसी को ज़िंदगी देने लिए...

टूटकर बिखरने,

टूटकर बिखरने लगता है बेइंतेहा तराशा हुआ हुस्न उनका जब रोते रोते मेरी यादों को अपने सीने से लगा लेते है वो...

रिश्ते,

ये रिश्ते तेरे मेरे दिल के जबसे दुनियां की नज़रों में आम हो गए, ऐतबार ए इश्क़ करते करते तुम पर ए हसीन हम दर्द ए मोहोब्बत एक क़िताब हो गए...

एक मुलाक़ात,

एक हसीं मुलाक़ात के बाद वो मेरे दिल के मेहमान हो गए, जब्से धोखा दिया उन्होनें मुझको तब्से वो मेरी नज़र में आम हो गए...

मोहोब्बत क्या हुई,

उन्से मोहोब्बत क्या हुई दुनियां की नज़र में एक गुनेहगार हो गए, लड़ते झगड़ते रिवाज़ो से ना जानें कब हम एक इश्तेहार हो गए...

कश्ती,

कागज़ की कश्ती अंबर से बरसता बारिश का पानी, यूंही बेवजह मुस्कुराता हुआ बचपन धुंधली यादों की एक तस्वीर पुरानी...

मेरी राज़ ए ख़ामोशी,

मेरी राज़ ए ख़ामोशी मैं कब तक यूंही सवारूं तुझको, अब तो मेरा आईना भी मुझसे सवाल हज़ार करता है...

ये बेताबी,

ये बेताबी मेरी आंखों की कभी खत्म होती ही नहीं छोटा सा सफ़र है पर तय करने फासले बहुत बाकी है अभी...

बेताबी,

कौनसी शाम आयेगी आंखों में बेताबी लेकर चाहतों की तुम्हारी, ए हसीं की इंतज़ार ए वक्त अब मुझसे संभलता ही नहीं...

दरिया,

उनकी हसीं यादों का दरिया छलकने लगता है आँखों से कभी कभी, मरीज़ ए इश्क़ हूं जनाब मेरे हर मर्ज की दवा है वो...

सिकुड़ने लगा है,

सिकुड़ने लगा है ख्वाइशों का आसमां धीरे धीरे जिमेदारियां में मेरा बचपन कहीं खो सा गया है...

साथ,

रूहानी साथ दिलबर ए ख़ास तुम तलाश हो मेरी जो बुझती ही नहीं किसी पैमाने से कभी ए हसीं  तुम वो प्यास है मेरी...

नादां मोहोब्बत,

आजकल की ये नादां मोहोब्बत एक दूजे के लिए इतंकाम हो गई,  किसी की मुस्कुराती हुई सुबह तो  किसी की ढलती हुई शाम हो गई,  कुछ मुकमल हुई खुदा की रहमत से तो कुछ दास्तां ए इश्क़ गुमनाम हो गई, वक्त गुजरता रहा लेकर ख्वाइशों को दिल ही दिल में कुछ हक़ीक़त हुई तो कुछ आंखों पर भाप हो गई, जिक्र हुआ जब महफ़िल ए इश्क़ में उनका तो बताते बताते चंद लम्हों में  रात हो गई....

दौड़,

मेरी ये दौड़ ख़्वाब ए ज़िंदगी एक खुशनुमा आस बन गई, जानें अंजाने में ही सही इस खुदगर्ज दुनियां की नज़रों में ख़ास बन गई,  इक अरसा बीत गया संभालते संभालते खवाईशो को अपनी  ए खुदा, कुछ दौड़ते भागते सपनों के  पीछे अब मेरी ये ज़िंदगी एक अधूरी प्यास बन गई....

तुमसे इश्क़,

तुमसे इश्क़ करूं या दीवानो  की तरह यूंही निहारूं तुमको, लेकर आगोश में अपनी आज थोड़ी मोहोब्बत करना सीखा दूं तुमको, मेहंदी संग मिलाकर मुस्कुराहट को तेरी अपने हाथों की रौनक  बना लूं तुमको, काजल बना के चाहत को तुम्हारी आंखों पर अपनी हमेशा के लिए सज़ा लूं तुमको....

छांव,

तू मुझको अपनी ममता के  आंचल की छांव दे ज़िंदगी, टूटा ही सही अपना तराशा  हुआ इक ख़्वाब दे ज़िंदगी, ढूंढ ही लूंगा मैं किसी दिन  ठिकाना अपनी ख़्वाब ए  मंज़िल का, तू चलने दे मुझको यूहीं मेरे  सफ़र तक नंगे पांव ज़िंदगी...

ज़ुल्म,

ज़ुल्म हज़ार हुए मुझपर दर्द ख्वाइशों को मेरी अश्कों में बदलता चला गया, हासिल क्या हुआ उनको मालूम नहीं खोया जो मैंने करना उसका हिसाब बाकी है अभी....

ज़ुल्म,

ज़ुल्म हज़ार हुए मुझपर दर्द  ख्वाइशों को मेरी अश्कों में  बदलता चला गया,  भटकते रहे दर बदर वक्त हर  अज़ीज़ चीज़ को मेरी धुएं में  उड़ाता चला गया,  हर अंजान शख्स मुझको मेरी  ही यादों में घुमाता चला गया,  करते रहे ज़ुल्म वो लेकर मुझे आगोश  में अपनी और वजूद मेरा ख़ामोशी से  मुस्कुराता चला गया...

खवाईशो का पहिया,

खवाईशो का पहिया  रुका रुका सा क्यूं है, आज दिल मेरा मुझसे खफ़ा ख़फा सा क्यूं, बदलती रहती है ज़िंदगी कुछ बेरंग सपनों को मेरे आहिस्ता आहिस्ता, जलती है उनकी हसीं यादें गीली दिल की जमीं पर लगता आंखों में धुआं धुआं सा क्यूं है,  गुनेहगार नहीं मैं तेरा ए खुदा फिरभी मेरा ये सर दर पर तेरे आज झुका झुका सा क्यूं है...

पहिये,

एक पहिये पर बेइंतेहा मुस्कुराती ज़िंदगी और ये तेरी मेरी खट्टी मीठी मुलाकातों का सफ़र, इंतेज़ार रहता है मेरी इन आँखों को बस तुम्हारा जब भीग जाता हूं तुम्हारी यादों में कभी कभी...

ये तेरी,

ये तेरी मोहोब्बत इस तरह बिगड़ती क्यूं है मुझपर मेरी खामोशियो अक्सर मुझसे ये सवाल करती है गुज़र जाती है मेरी हर रात बेचैन होकर मोहोब्बत में तेरी करवट्टे बदलते बदलते मेरे दिल में बस रह  जाती ख्वाईशे कभी कभी...

वक्त की चादर,

वक्त की चादर में सिमटने लगा है चाहतों का शहर मेरा इस रात से कह दो ज़रा आहिस्ता से गुज़रे पूछने उनकी हसीन यादों से अंगीनत सवाल बाकी है अभी...

उमदा,

बहुत ही उम्म्दा है तीर ए नज़र वार उनका जब्भी देखते है वो मुझको दिल के पार हो जाती है मोहोब्बत उनकी...