तुम्हें किस बात का ग़म है,

तुम्हें किस बात का ग़म है इतना हसीन चेहरा है तुम्हारा पर लगता उतरा उतरा सा क्यों है लब ख़ामोश है फिरभी पलकें तुम्हारी लगती मुझे भीगी भीगी सी क्यूं है जानता हूं तुम्हारे दिल की बेरुखी को भी बहने दो जज़्बातों को अश्कों की धारा के साथ समेटा हुआ इतना अपने अंदर दुखों का सागर क्यूं है कि सारा जोश मद्धम है मेरे पास होते हुए भी छाई तुम्हारे चेहरे पर बेवजाह उदासी क्यूं है...

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