आज़ मैं जहाँ हूँ,
आज़ मैं जहाँ हूँ,
वहां से मुझको हर अज़ीज़
अपना मुस्कुराता हुआ दिखता है,
जहां की मिट्टी का रंग मुझको
लगता आज भी सुनेहरा है,
चलता हूं जब मैं कुछ दूरी तलक
तो मुझको मेरे बचपन की हसीं
यादों का काफ़िला दौड़ता भागता
वहां की सड़को पर मिलता है,
धड़कता है दिल मेरा बहुत ही
शोर करता है जब अपनी मासूम
छवि को देखकर भावविभोर होता
है,
कभी कभी लगता है मुझको
चलता रहता हूं मैं हर लम्हा,
पर वक्त का पहिया मुझको लेकर
वहीं का वहीं ठहरा हुआ सा कभी आगे
तो कभी पीछे हिलता है।
Comments
Post a Comment