दिल का दीया
दिल का दीया लगता मुझे बुझा बुझा सा क्यों है, मेरी खुशियों का काफ़िला लगता मुझे बेवजाह रुका रुका सा क्यों है, जाने किस सोच में डूबा है मन मेरा लगता हर समय मुझको हेरां परेशां सा क्यों है, चेहरे पर मुस्कान है फिरभी आईने में मेरा अक्स उसे झुठलाता क्यों है, लब ख़ामोश हैं मगर फिरभी दिल मेरा हमेशा गुनगुनाता क्यों है.....
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