ख़्वाबों की इक बस्ती थी,

जो मुझे मेरी बंद आँखों में दिखती थी,
लगा रहता था वहां आना जाना ख़्वाबों 
का मेरे जहां की हर चीज़ हर दफा कुछ 
अलग अलग सी लगती थी, मेरी खुशियां 
भी बस्ती है ख़्वाब बनकर जहां मिलती 
उनको सदा उनकी सपनों की कश्ती थी,
ख़्वाबों की इक बस्ती थी, मौजूद जिसमें 
अपनी हस्ती थी...

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