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Showing posts from January, 2022

किसलिए कमज़ोर पड़ जाते हैं हम,

किसलिए कमज़ोर पड़ जाते हैं हम  खुद से किया वादा क्यूं भूल जाते है हम,  माना दिल पर किसी का ज़ोर नहीं चलता  फिर क्यूं एक शख्स की खातिर अपनो को  पीछे छोड़ आते है हम,  जब हर चीज़ बदल जाती है ज़िंदगी में हमारी  फिर क्यूं संस्कारों को दीवारों पर सजाते है हम,  मिलेगा धोका जानते हुए भी उसमें  अपना खुदा ढूंढने लग जाते है हम,  खुद से किया वादा भूल जाते हैं हम  जाने क्यूं कमज़ोर पड़ जाते है हम....

ख़ालीपन कब भरेगा दिल का,

ख़ालीपन कब भरेगा दिल का  क्यूं इसको किसी का इंतज़ार  रहता है,  कभी टूटकर बिखरता है किसी के  प्यार में तो कभी किसी को याद  करके बेइंतेहा रोता है,  हंसने गाने के लिए है ज़िंदगी  ना जाने क्यूं ये इतना दर्द सहता है,  इस फरेबी दुनियां में जाने क्यूं  हर अंजान शख्स को ये अपना कहता है,  ख़ालीपन कब भरेगा इस दिल का क्यूं इसको किसी का इंतज़ार रहता है...

रात ख़्वाब बुनती है,

रात ख़्वाब बुनती है  रोज़ मेरी ख्वाइशों को  सजाने के लिए एक संसार  नया चुनती है,  चोरी छुपे मेरे हर एक दुख  दर्द को बड़े ध्यान से कान  लगाकर सुनती है,  जब ख़ामोश रहता हूं मैं तो मेरी पलकों पर आकर  मुस्कान बेइंतहा भर्ती है,  लेकर आगोश में मुझको  ये रात मेरे ख्वाबों के लिए  रोज़ एक नया आसमां चुनती है...

ये शहर वो शहर तो नहीं,

ये शहर वो शहर तो नहीं  खुश हूं मगर कोई अफसोस भी नहीं,  ऊंचाइयों पर खड़ा हूं पर दिखता मुझको मेरा कोई हमदर्द क्यूं नहीं,  हवा से बातें करता हूं अब कल्पनाओं में अपनी बहता क्यूं नहीं,  सीखता हूं हर दिन कुछ नया कुछ भूल जाता हूं  अक्सर आधी रात बेवक्त जाग जाता हूं,  ये शहर वो शहर तो नहीं  देखता हूं इसको तो ये, मुझे मेरे ख्वाबों के शहर सा लगता क्यूं नहीं....

टूटकर बिखरने लगी है शख्सियत मेरी,

टूटकर बिखरने लगी है शख्सियत मेरी अब तो छोटी छोटी खुशियों को भी मेरी आंखों में आसरा नहीं मिलता...

हम फिर वहीं जा पहुँचे,

हम फिर वहीं जा पहुँचे  जहां से आज भी मेरा अतीत  मुझको देखकर बेइंतेहा मुस्कुराता है,  भूल जाता हूं जब मैं खुदको  तो मेरा अतीत अंधेरे में रोशनी  सा जगमगाता है,  यादों की दीवार धुंधली पड़  जाती है जब वक्त के पहिए  को मैं पीछे धकेलने लगता हूं,  छोड़ आया था मैं जहां खुदको  जाने अंजाने में, खुशियों को ढूंढता हुआ अपनी फिर से वहीं पहुंच जाता हूं...

अपनी राह बनाने निकले,

अपनी राह बनाने निकले,  हम मुसाफ़िर ज़िंदगी के सफ़र में  खुशियों को तलाशने अपनी बंदिशों  के शहर से बाहर निकले,  बेइंतेहा खूबसूरत लगता है  मुझको मेरी ख्वाइशों का महल,  तराशने जिसमें हम अपनी  ज़िंदगी का मक़सद गुमनाम  अंधेरों के साथ निकले,  जाने बिना पता अपनी मंज़िल का  हम लेकर गुमशुदा पहचान को अंजान  रास्तों से कई बार गुज़रे,  ज़िंदगी को पाने की तमन्ना  लिए आँखों में मुसाफ़िर अपनी  मंज़िल के हम कितने दीवाने निकले...

बड़े इम्तिहान लेती है,

बड़े इम्तिहान लेती है मुझसे ये मेरी ज़िंदगी  जब्भी लिखा खुदको ज़िंदगी के पन्नों पर हर  दफा अधूरा ही लिखा...