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Showing posts from December, 2022

बहुत,

बहुत शर्मिला है अंदाज़ ए मोहोब्बत उसका ए खुदा फिरभी अपनी आगोश में लेकर मेरी धड़कनों को बढ़ा  देता है...

रातेँ छोटी,

रातेँ छोटी होने लगी है मोहोब्बत में अब तुम्हारी ए हमसफ़र सहर हो जाती है अब तो बस अपने ख्यालों में ही तराशते-तराशते हुए तुमको...

ख़ाली रहने लगा है,

ख़ाली रहने लगा है उनकी यादों का महल जब्से कैद हूं उनकी कसमों की सरहदों में

पुर्ज़ा पुर्ज़ा,

पुर्ज़ा पुर्ज़ा बिखर गया उनकी यादों का हर जगह  मेरी तकलीफों ने बड़े अदब से संभाला है मुझको...

पता है क्या,

पता है क्या मैं तुम्हारी मोहोब्बत में इतना मशरूफ हो गया हूं की अब मुझे तुम्हारे सिवा कोई दूसरा ख़्याल नहीं आता...

मोहोब्बत के किस्से,

मोहोब्बत के किस्से तो सिर्फ़ कहानियां में ही अच्छे लगते है जनाब क्यूंकि समय आने पर तो अपना साया भी साथ छोड़ देता है...

टहलता है,

टहलता है मेरा मन ये बावरा गलियों में तेरी ए सनम मानों एक फरियादी को तलाश हो फ़रियाद की जैसे...

अक्सर,

अक्सर अपनी तीखी-तीखी नज़रों से मेरी मोहोब्बत को टटोलता है वो, फिरभी जानें क्यूं उसकी अंगीनत ख्वाइशों को अपने आंचल समेटा हुआ है मैंने...

सवारने लगा है,

सवरने लगा है मेरा आईना आजकल देखकर उनको कभी जो मेरा हमदर्द था आज बदला बदला सा लगता है...

कुछ इस क़दर,

कुछ इस क़दर बेसुध हो गया हूं मोहोब्बत में तुम्हारी ए हसीं की अब हमें अपना आज और आने वाला कल दिखाई ही नहीं देता...

आजकल मोहोब्बत,

आजकल मोहोब्बत पर मेरी मेरा कोई ज़ोर नहीं ग़ालिब जितनी दूरियां बनाता हूं उतना ही नज़दीक पाता खुदको...

क्यूं बेवजह,

क्यूं बेवजह मुस्कुरा रहा है आज आईना मेरा पहले तो मेरी ख़ामोशी को समझ लेता था वो...

ख़ामोश हो गई,

ख़ामोश हो गई है आजकल बचकाना मोहोब्बत उनकी ऐसा लगता है जैसे की उन्हें अब खुदपर ऐतबार नहीं...

सब कहते थे,

सब कहते थे की जिमेदार बनो अपनी जिमेदारियाँ को समझो पर किसे पता था की एक दिन ये जिमेदारियां ही हमें खुद्से से दूर ले जाएंगी बदलते आसमान के साथ...

धकेलता रहता हूं,

धकेलता रहता हूं उनकी यादों को जेहन में हर जगह, फिरभी उस शख्स के लिए सिवा एक अजनबी के मैं  कुछ भी नहीं...

जाने क्यूं,

जाने क्यूं मेरी बेपनाह मोहोब्बत का नज़ायज फायदा उठाते है वो, बेशुमार दर्द भी देते है वो भी तकलीफ़ कितनी होगी ये जाने बगैर..

मांगा था खुदा से,

मांगा था खुदा से एक टुकड़ा उनकी बेपनाह मोहोब्बत का यारों, खुदा की रहमत तो देखो अब वो ज़रा सा मुस्कुराकर मुझसे दूर चला जाता है....

कैसे बयां,

कैसे बयां करे लफ्जों तुमसे हम अपनी मोहोब्बत हसीन शाम ढल जायेगी बस तुम्हें देखते ही देखते...

जाने कैसी,

जाने कैसी तपिश है आगोश में तुम्हारी ए सनम आंसुओ का कतरा कतरा सुख जाता है पलकों पर आते आते मेरी...

तालुक,

तालुक था जिस शख्स का हर खुशी से मेरी आज वही तकलीफ़ देते थकता ही नहीं कभी...

तहज़ीब,

क्यूं सालों की तहज़ीब जुबां बस कुछ पलों में भूल जाती है, ज़रा ज़रा सी बात पर अपने अज़ीज़ को भी गैर बना देती है...

माना की,

माना पैसा अच्छी चीज़ है पर क्या आप जानते है की  यही पैसा अच्छे अच्छे रिश्तों को मिनटों में निगल जाता है...

जब इंसान,

जब इंसान की आंखों पर अज्ञानता की पट्टी पड़ी हो तो वो अपने अच्छे या बुरे का चयन करने सक्षम नहीं होता।

एक अच्छी,

एक अच्छी परवरिश ही अच्छे भविष्य का निर्माण करती है...

मनुष्य की,

मनुष्य की ख़राब मानसिकता ही उसे उसके क्रोध पर काबू पाने नही देती और उसका क्रोध उसे उचित निर्णय नहीं लेने देता...

आईना आजकल,

आईना आजकल मेरी खुशियों को झुठलाने लगा है ऐसा लगता जैसे मेरी मुस्कुराहट के पीछे छिपे दर्द से  मानो वाक़िफ है वो...

माना हर,

माना हर किस्म के ज़ख्म को भरने की ताकत है मुझमें पर जब ठहरता हूं तो बड़ी ख़ामोशी से गुज़र जाता हूं मैं...

जाने कैसी,

जाने कैसी कशमकश है ये उन्मत्त दिल मेरा बेजुबां धड़कता तो है पर कहता कुछ भी नहीं...

अश्कों का काफ़िला,

अश्कों का काफ़िला अब आंखों से गुजरने को है और एक वो है की जो दर्द पर दर्द दिए जा रहे है....

बेवजह ढूंढता हूं,

बेवजह ढूंढता हूं उनको टूटे हुए ख्वाबों के दर्मियां अपने जिनके कदमों के निशा आज भी मेरे दिल की जमीं पर है...

मेरी ख़ामोशी,

मेरी ख़ामोशी कभी कभी मुझसे बेतुके सवाल करती है,  अधूरे ख्वाबों में ए हमसफ़र बस तेरी ही तलाश करती है...

किसी का,

किसी का अच्छा सोचना आजकल किसी गुनाह से कम नहीं दोस्तों, रूह के रिश्ते भी कभी कभी पराए से लगने लगते हैं...

जब मनुष्य,

जब मनुष्य पर उसका अहम हावी हो जाता है तो सदा उसे दूसरो में कमियां ही दिखाई देती है

सही मायनों में,

सही मायनों में जीवन की उत्तम परिकल्पना वही व्यक्ति कर सकता है, जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में कभी जगमगाता हुआ आसमां नहीं देखा....

ज़िंदगी में,

ज़िंदगी में कभी किसी की निंदा करके कुछ हासिल नहीं होता जनाब, बस वक्त लग जाता है कभी कभी खुदसे  रूबरू होने में...

बड़ा ही,

बड़ा ही पेचीदा है तसव्वुर-ए-आलम मोहोब्बत का उनकी, बह जाता हूं हंसीन खयालों में उनके फिरभी उनके दिल के दरिया का किनारा नहीं मिलता....

बेटा मेरी आवाज़ हो तुम,

बेटा मेरी आवाज़ हो तुम पल में खुश तो कभी पल में नाराज़ हो तुम, जब देखता हूं तुमको  तो मुझे बचपन अपना दिखाई देता है, ख्वाइशों से भरा हुआ ये मेरा जीवन अंगड़ाइयां लेने लगता है,  चेहरे पर तुम्हारे हमेशा शरारतो से भरी मुस्कान अच्छी लगती है, सुकुन भरी नींद तो तुम्हे  बस अपनी मां के आंचल में ही मिलती है, बुरा नहीं हूं मैं बस  उज्जवल भविष्य तुम्हारा चाहता हूं,  इसलिए सामने तुम्हारे  अच्छी अच्छी बातों को दोहराता हूं,  बेटा हमारी आवाज़ हो तुम क्यूंकि हमारी ज़िंदगी में  सबसे ख़ास हो तुम.... 

सुना है,

सुना है हर चीज़ के वजूद और उसकी एहमियत को बदलने की ताक़त है तुझमें, पर किसी मुजस्समे को हकीक़त बना दे ए वक्त तू इतना भी काबिल नहीं...

व्यक्ति को,

"व्यक्ति को कोई और नहीं बल्की उसकी सहनशीलता ही कमज़ोर बनाती है।"

कभी कभी

"कभी कभी आपका ज़रूरत से ज्यादा अच्छा होना आपको आपकी निंदा और आलोचना का पात्र बनाता है"

Thought of the Day

"मनुष्य का मौन ही उसके  अस्तित्व को समाप्त कर देता है।"