मेरे माथे पर पड़ने,
मेरे माथे पर पड़ने वाली हर एक शिकन उनके पीछे छिपी मेरी एक दास्तान कहती है। गौर से देखता है जब भी कोई शख्स इनको मन ही मन उसको बहुत परेशान करती हैं। जो बयां उसको गुज़रा हुआ कल मेरा और उनसे मेरा सारा आज का वर्तमान कहती है। सोच में डूब जाता है हर वो शख्स जिनकी आँखें मेरी शिकन के पीछे छिपे दर्द को भलीभांति पहचान लेती है। कई मर्तबा मुझसे भी मेरे माथे की शिकन कुछ अधूरे से सवाल करती है। फिर वो मुझसे उनके और मेरे दर्मियां जुड़े कई राज़ कहती हैं। काफ़ी हल्का हल्का सा मेहसूस करता हूं खुदको जब वो बेजुुबां हाल ए दिल कहतेे कहते अपना मेरे माथे पर बड़े इत्मीनान से बहती है। लुप्त हो जाती है मेरे माथे की शिकन खुद ब खुद जब उनको मेरी ज़िंदगी बेवजाह मुस्कान देती है।
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