छूने लगा जो गऊ को
छूने लगा जो गऊ को तो मुझसे मिलने धर्म के पहरेदार आ गए, धर्म क्या है मेरा मुझसे पूछने ये सवाल एक नहीं हज़र आ गए, समझता था मैं एक इंसान खुदको पर मेरा ये भ्रम तोड़ने सब लोग घर से अपने बाहर आ गए, पहचान क्या है मेरी बातों ही बातों में मुझसे बूझने बड़े बड़े पत्रकार आ गए, फिर खाखोड़ने मुझको मुझमें काफ़ी समय बाद उनके फौजदार आ गए, मिला नहीं जब कुछ भी उन्हें तो मुझमें मेरा खुदा तराशने धर्म के जाने माने सुनार बेशुमार आ गए, लड़ता रहा अकेला सभी से खुदको गुनेहगार सा मेहसूस करने लगा जब लड़ने मुझसे राम के भेष में रावण के कई अवतार आ गए, चला था आशीर्वाद लेने गऊ माता का पर ना जाने कहां से मुझे समझाने के लिए उन्में दुनियां भर के संस्कार आ गए.....