हां मैं प्रवासी हूं जानू न कौन देश का वासी हूं, मक़सद ज़िंदगी का मेरी सिर्फ़ अपनी मंज़िल तक चलकर जाना है, रखता हूं बुनियाद किसी के सपनों की तो किसी के सपनो का संसार को रोज़ बदलता हूं, जब पिस्ता हूं हर दिन कड़ी धूप में पेट अपना भर पाता हूं, जिस दिन नहीं मिलता काम कोई तो भूखा ही सो जाता हूं, इस दुनियां में भला मुझको इंसान कौन समझता है ज़रा सी गलती पर मेरी जात को कोसने लगता है, काम मेहनत का करता हूं पर मेरी ज़िंदगी सस्ती क्यूं लगती है महंगाई की मार मुझपर ही क्यों पड़ती है...