छांव,

तू मुझको अपनी ममता के 
आंचल की छांव दे ज़िंदगी,

टूटा ही सही अपना तराशा 
हुआ इक ख़्वाब दे ज़िंदगी,

ढूंढ ही लूंगा मैं किसी दिन 
ठिकाना अपनी ख़्वाब ए 
मंज़िल का,

तू चलने दे मुझको यूहीं मेरे 
सफ़र तक नंगे पांव ज़िंदगी...

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