धुन,

धुन ज़िन्दगी की अक्सर गुनगुनाता हूं मैं 
बेचैन दिल को अपने राहत दिलाता हूं मैं, 
भूल जाता हूं तमाम दुख दर्द अपना जब 
कभी अधूरी हसरतो की महफ़िल सजाता हूं मैं, 
खड़ा रहता हूं साथ अपनी ज़िंदगी के सदा
जीवन के हर एक पहलू को बखूबी समझाता हूँ मैं,
फ़िरभी हर दफ़ा लड़ते झगड़ते हुए 
खुदसे ही हर मर्तबा हार जाता हूं मैं...

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