ज़ुल्म,
ज़ुल्म हज़ार हुए मुझपर दर्द
ख्वाइशों को मेरी अश्कों में
बदलता चला गया,
भटकते रहे दर बदर वक्त हर
अज़ीज़ चीज़ को मेरी धुएं में
उड़ाता चला गया,
हर अंजान शख्स मुझको मेरी
ही यादों में घुमाता चला गया,
करते रहे ज़ुल्म वो लेकर मुझे आगोश
में अपनी और वजूद मेरा ख़ामोशी से
मुस्कुराता चला गया...
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