अपनी राह बनाने निकले,
अपनी राह बनाने निकले,
हम मुसाफ़िर ज़िंदगी के सफ़र में
खुशियों को तलाशने अपनी बंदिशों
के शहर से बाहर निकले,
बेइंतेहा खूबसूरत लगता है
मुझको मेरी ख्वाइशों का महल,
तराशने जिसमें हम अपनी
ज़िंदगी का मक़सद गुमनाम
अंधेरों के साथ निकले,
जाने बिना पता अपनी मंज़िल का
हम लेकर गुमशुदा पहचान को अंजान
रास्तों से कई बार गुज़रे,
ज़िंदगी को पाने की तमन्ना
लिए आँखों में मुसाफ़िर अपनी
मंज़िल के हम कितने दीवाने निकले...
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