हम फिर वहीं जा पहुँचे,

हम फिर वहीं जा पहुँचे 
जहां से आज भी मेरा अतीत 
मुझको देखकर बेइंतेहा मुस्कुराता है, 

भूल जाता हूं जब मैं खुदको 
तो मेरा अतीत अंधेरे में रोशनी 
सा जगमगाता है, 

यादों की दीवार धुंधली पड़ 
जाती है जब वक्त के पहिए 
को मैं पीछे धकेलने लगता हूं, 

छोड़ आया था मैं जहां खुदको 
जाने अंजाने में, खुशियों को ढूंढता
हुआ अपनी फिर से वहीं पहुंच जाता हूं...

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