ये शहर वो शहर तो नहीं,

ये शहर वो शहर तो नहीं 
खुश हूं मगर कोई अफसोस भी नहीं, 

ऊंचाइयों पर खड़ा हूं पर
दिखता मुझको मेरा कोई हमदर्द क्यूं नहीं, 

हवा से बातें करता हूं अब
कल्पनाओं में अपनी बहता क्यूं नहीं, 

सीखता हूं हर दिन कुछ नया कुछ भूल जाता हूं 
अक्सर आधी रात बेवक्त जाग जाता हूं, 

ये शहर वो शहर तो नहीं 
देखता हूं इसको तो ये,

मुझे मेरे ख्वाबों के शहर सा
लगता क्यूं नहीं....

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