ज़िंदगी कैद है आज,
ज़िंदगी कैद है आज अपने ही आशियानों में
मौत देख रही है रास्ता सड़को और बाजारों में
तड़प रही है ज़िंदगी सड़को और दवाखानो में,
मरकर भी इंसा लगा हुआ है शमशान की कतारों में
रोकना है तो रोक लो सांसों की काला बाज़ारी को
हार चुकी है ज़िंदगी लड़ते लड़ते इन हालातों से,
दिवारी में तो कहीं भटक रहा है पैदल पैदल नंगे
पांव भूखा और प्यासा तपती धूप के फुहारों में,
दौड़ रहा है बेरोजगार तालाश ए रोजगारों तक
देना है तो एक दूसरे का साथ दो तुम ना सही
साथ खड़े तो कम से कम उनकी आवाज़ बनो,
जरिया ही बनजाओ किसी तरह से ज़िंदगी किसी
की बच जायेगी कहीं तो इंसानियत आगे आयेगी
क्या होगा जब न लौटेगा वो बूढ़ी आंखों का सहारा
क्या होगा उन बिन मां बाप के अनाथों का कौन
बनेगा उनका सहारा किस तरह जी पायेंगे वो बिना
सहारे के अब समय है अपनो के पास रहो काम में
खुश और थोड़े में आबाद रहो....
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