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Showing posts from August, 2025

दर्द-ए-सितम

दर्द-ए-सितम कैसे बयाँ करें, ऐ हमसफ़र तुम्हें  ख़्वाबों में तराशता रहा तुम्हें लम्हे गुज़रते रहे।

क़रीब बैठा रहा

क़रीब बैठा रहा है वो शख़्स एक तस्वीर की तरह वक़्त के साथ अश्कों का क़ाफ़िला गुज़रता रहा।

तकलीफ़ देता है

तकलीफ़ देता है मुझको आजकल मुस्कुराना उनका हर मुस्कुराहट के पीछे छुपा कोई फ़साना देखता हूँ।

मुलाकातों का ये

मुलाकातों का ये सफ़र अब आम होने लगा मैं तुम्हारी हसीन यादों का ग़ुलाम होने लगा

इश्क़ की स्याही से

इश्क़ की स्याही से दास्ताँ-ए-मोहब्बत लिख दी हमने, फिर भी हज़ारों सवाल दस्तक देते हैं उनके ज़ेहन में।

सुलग रहा है

सुलग रहा है इक कारवां जेहन में ये मसला-ए-इश्क़ तो नहीं ए खुदा।

ज़रे-ज़रे की कर्ज़दार है ज़िंदगी

ज़रे-ज़रे की कर्ज़दार है ज़िंदगी,  तेरे इश्क़ की तलबगार है ज़िंदगी, टूटे ख़्वाबों की सौग़ात है ज़िंदगी, हर सहर एक नई तलाश है ज़िंदगी।