आख़िर क्यूं ,
आख़िर क्यूं वो मेरी ज़िंदगी का इक अधूरा हसीं ख़्वाब बन गए, जानें अंजाने में मेरी मोहोब्बत के अंगिनत सवालों का एक बेहद ही ख़ूबसूरत जवाब बन गए, सोचता हूं मैं मगर जानता नहीं आख़िर क्यूं वो देखते ही देखते मेरी गुमनाम
शख्सीयत की पहचान बन गए, बंजर थी जमीं कभी मेरे दिल की और ना जानें कब वो खुशियों की कली से जीता जागता एक गुलाब बन गए...
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