मुझे इस बदलती हुई,

मुझे इस बदलती हुई दुनियां के उसूलों से तुम अंजान ही रहने दो, इस बेइंतेहा ख़ूबसूरत आसमां में बिखरे हुए रंगों को एक ढलती हुई सुरमई शाम कहने दो, किसी पहचान 
की ज़रूरत नहीं इस शक्सियत को मेरी, तुम बस मुझको और मेरी ज़िंदगी को यूंही गुमनाम ही रहने दो...

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