शाम ढलने को है मगर,
शाम ढलने को है मगर
दीदार ए इश्क़ अधूरा है
मेरी ख़ामोश नज़रों का
करना इज़हार अधूरा है
चांद की ख्वाइश नहीं
मुझको बस उनकी यादों
में रहना है
जो आज है मेरा अपना
कल उन्हीं को कहना है
ए वक्त तू ठहर जा ज़रा
उनसे मेरी मुलाक़ात का
वो हसीं ख़्वाब अधूरा है
शाम ढलने को है मगर
मेरे दिल का उनके दिल
से अभी करना इज़हार
अधूरा है...
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