मैंने कब कहा,

मैंने कब कहा तुझसे की मुझे
कोई नाम दे ए ज़िंदगी,
इस चकाचौंध भरी दुनियां में रहने
दे मुझको गुमनाम ए ज़िंदगी,
ना पसंद हूं मैं सबको तो क्या हुआ
कभी भूख से तड़पती तो कभी
अधूरी प्यास है ये ज़िंदगी,
देता हूं दुआएं दिल से सभी को फिरभी
हमेशा क्यूं जिल्लत से भरी ढलती हुई
शाम है ये ज़िंदगी,
कहने को तो बहुत कुछ है पर
तेरी बदकिस्मती को छुपाना कहां
आसान ए ज़िंदगी,
मैंने तुझसे कब कहा की मुझे कोई
नाम दे तू बस रहने दे मुझको हमेशा यूंही
गुमनाम ए ज़िंदगी...

Comments

Popular posts from this blog

रात की कालिमा धुल गई

The most beautiful gift of nature is,