बचपन की वो बातें,

आज भी काग़ज की कश्ती में बैठे दिखते है मुझे कुछ सपने पुराने, उड़ता था मेरा बचपन अपने ख्वाबों के आसमां में कटी पतंग की तरह, याद आते हैं मुस्कुराते हुए वो पल जो लग जाते है मुझको बेवजह रूलाने, मौजूद है मेरे दिल की धरा पर आज भी वो गीली रेत का महल जिनमें रहती है मेरे नटखट बचपन की थोड़ी सी चहल पहल, याद है मुझको वो झूठ मूठ की कहानी जिनको सुनाकर मुझे मेरी नानी थी मुझे सुलाती, बचपन की वो बातें मेरा स्मृति दर्पण लग जाता है मुझको तस्वीरों में दिखाने, छोटी सी आंखों में मेरी बड़े बड़े सपनों की झलक आज भी दिखती है, जिन्हें सुनकर आज भी मेरे घर के सब बड़ो की ताली बजती है, हंसते थे मिलकर सब जब करते है आपस में मेरे बचपन बिना सिर पैर की बातें, बचपन की वो बातें जब कभी मुझे याद आती है तो हर दफा लगती है मुझको बेवक्त सताने.... 

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