गुमसुम सा रहने लगा हूं,

गुमसुम सा रहने लगा हूं जिंदगी में 
करने लगा हूं बाते खुद के दिल और 
दिमाग़ से सोचने लगा हूं हर पहर,

नींद आती नहीं मुझको
परेशान करने लगे है मेरे 
शब्द लिखता हूं जिन्हें मैं 
जागकर रातभर,

जीने लगा हूं ज़िंदगी को 
अक्सर अपने ही ख्यालों में 
कहते है मुझसे मेरे अपने 
कुछ तो बदल सा गया हूं मैं,

हां कुछ तो बदल सा गया हूं मैं 
और बदल गया है मेरा नज़रिया 
क्यूंकि बेजान चीजों की ख़ामोशी
को मेहसूस करने लगा हूं मैं,

पहले मैं अपने व्यक्तिव पर दूसरों
की कही अच्छी बातें लिखता था
और अब अपने शब्दों को लिखना 
सीख गया हूं मैं,

नज़रंदाज़ करता था भावनाओं और 
कल्पनाओं को खुद की अब उन्हें
अपने शब्दों में कैद करना सीख चुका 
हूं मैं,

लिखता तो मैं पहले भी था ज़िंदगी में 
अपनी पर जबभी लिखा तो दूसरो की
कही बातों को ही लिखा पर अब सही 
मायने में अपने अस्तित्व को शब्दों में
अपने लिखना सीख गया हूं मैं,

हां थोड़ा सा बदल गया हूं मैं...


Comments

Popular posts from this blog

Life without friends is like

I'm one step away,

If I were a river....