रोकने की ज़रूरत नहीं,
रोकने की ज़रूरत नहीं
ज़िंदगी तू इतनी भी
खूबसूरत नहीं,
मनाना छोड़ दे मुझको
क्यूंकि मुझपर अब मेरी
हुकूमत नहीं,
बिखरता है ख्वाइशों
का आसमां मेरा टुकड़ों
में जमीं पर,
ज़िंदगी पर तुझे
मुझको समेटने की
फुर्सत नहीं,
जीता आया हूं हर
लम्हे में खुशियों को
अपनी सुकून से,
पर मुझमें फिरसे
टूटकर बिखरने की
जुर्रत नहीं,
गुनाह क्या है मेरा
ये खुदा जानता है,
तुझको आईनों से
पूछने की ज़रूरत
नहीं....
Comments
Post a Comment