एक रास्ता ऐसा भी था,
एक रास्ता ऐसा भी था जो मुझको मेरे ही वजूद से मिलाने लगता है, बेवजह मुझको मेरी खुशियों से रूबरू कराने निकल पड़ता है, बहता रहता है सपनों का दरिया मैं किनारे बैठा रहता हूं, देखता हूं जब मैं उसको तो रंग अपना बदलने लगता है, कभी कभी तो वो मुझको अजनबी समझने लगता है, चलता हूं जब दरिया पर तो मेरे कदमों के निशां मिट जाते है, ढूंढने लगता हूं जमीं को जब मैं भटकने लगता हूं, ख़ामोश हो जाता हूं जब पानी दरिया का घटने लगता है, आहिस्ता आहिस्ता मेरी आंखों में सिमटने लगता है, एक रास्ता ऐसा भी था जिसे मुझे मेरी खुशियों से रूबरू कराना अच्छा लगता है।
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