रोकता हूं खुदको,

रोकता हूं खुदको 
इश्क़ के दरिया में 
बहने लगता हूं,

उनकी हसीन यादों
की कश्ती में सफ़र 
जो करने लगता हूं,

बेचैन हो जाता हूं मैं
जब उनकी जुल्फों के 
भंवर में फसता हूं

देखता हूं जब उन्हें
तो समझकर आईना
सवरने लगता हूं,

ख़ामोश रहता हूं जब
उनके होंटो पर अपने
होंटो से जज़्बात दिल
के लिखता हूं,

देखकर पाक मोहोब्बत
उनकी मेरा ईमान तौबा 
तौबा करने लगता है,

दर्मियां बैठता हूं उनके
तो मेरे इश्क़ का प्याला
छलकने लगता है,

इश्क़ के सफ़र को 
अपने बेइंतहा मैं जीने 
लगता हूं,

एक नहीं कई दफा जब 
उनकी मदहोश निगाहों
में डूबकर मैं मछली सा 
तड़पने लगता हूं,

रोकता हूं खुदको 
पर ना जाने क्यूं,

मैं पंछी जैसे ख्वाबों
के आसमां में उनके
उड़ने लगता हूं,

ठहरा रहता हूं इक
सूखे पत्ते के तरह 
पर ना जाने क्यूं,

इश्क़ के दरिया में
लहरों के साथ साथ
मैं भी बहने लगता हूं,

मिलता नहीं जब
उनको मांगने पर
दुआओं में उनकी,

तो बनकर पानी
आंखों से उनकी
टपकने लगता हूं,

मैं तो एक काफ़िर हूं
पर जाने क्यूं उनके 
इश्क़ के दरिया में 
सफ़र करने लगता हूं।

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