फ़ासला इतना न था,

फ़ासला इतना न था,

तेरा मुझसे ए मेरी ज़िंदगी 
थोड़ा बहक गया हूं इश्क़ की 
गलियों में आकर, 

निकल पाना जहां से मुश्किल 
है मेरा क्यूंकि मुझे अपने कदमों 
के निशां नहीं मिलते, 

भटकता रहता हूं तलाश में 
खुद की वीरान रास्तों पर, 

हाँ मगर सोचा न था सफ़र मेरा 
मुझे खुदसे इतना दूर ले आयेगा....

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