लिख रही है चाँदनी,

ख्वाइशों को अपनी कोरे दिल के कागज़ पर
लिखती और मिटाती है ख्वाइशों को अपनी 
हर बार थोड़ी गुमसुम है मगर आंखें उसकी 
बात करती है जो बयां उसकी तड़पती हर रात 
करती है बनाकर रात को अपना आईना उससे 
कई मर्तबा बात करती है टूट जाते तारे भी जब 
पूरी उसकी कोई फ़रियाद होती है।

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