मुद्दतें गुज़रीं,

मैं गिरकर संभालता ठोकर लगने पर
वक्त गुजरता रहा उम्र मेरी ढलने लगी
खुद को ना बदल सका वक्त के साथ 
हो गया मशरुफ उलझनों में अपनी इस 
कदर के कभी खुद के बारे में सोचने का 
वक्त ना मिला एक अरसा बीत गया है
खुद से रूबरू हुए अब तो मेरा अक्स 
भी मुझे अंजान समझने लगा है।

Comments

Popular posts from this blog

रात की कालिमा धुल गई

The most beautiful gift of nature is,