इक परिंदे सी ये ज़िन्दगी,
इक परिंदे सी ये ज़िन्दगी,
उड़ती है मन में गगन को छूने की आस लिए
भटकती रहती है दर बदर एक छोटे से आशियाने
का आंखों में ख़्वाब लिए तय कर लेती है मीलों
तक का सफ़र चुटकी में ख्वाइशों को अपनी पंख
लगाकर ज़िंदगी मेरी यहाँ वहाँ उड़ रही...
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