रात बिगड़ती क्यों है मुझ पर
रात बिगड़ती क्यों है मुझ पर
तेरे बिन रूह मेरी तड़पती क्यों है
लेती है जब अंगड़ाइयां मोहब्बत मेरी
करवट्टे बदलते बदलते बिस्तर पे रातभर
तेरी सांसें मेरी सांसों से झगड़ती क्यों है
मोहोब्बत में तेरी इस क़दर निकलती है
मेरे जिस्म से मेरी जान क्यों है
बाहों में लेकर अपनी मुझे कसलो ज़रा
लगता है थोड़ा थोड़ा पिघलने लगी हूं मैं
कर देती बेचैन मुझे मोहोब्बत तेरी
ना जाने क्यों ख़ामोश हो जाती हूं
आहिस्ता आहिस्ता तेरी मोहोब्बत
अक्सर करती मुझे बेजान क्यों है।
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