दिल को कौन समझाए
दिल को कौन समझाए
इश्क़ करना मेरी बस की बात नही
चाहना किसी को शिद्द्दत से आसान नहीं होता
बहुत दर्द सहना पड़ता है मोहोब्बत में
ताह उम्र उसी का होकर रहना पड़ता
दिल टूटता और बिखरता है कई मर्तबा
इसकी हिफाज़त करना मेरे बस बात नहीं
बहते हैं आंसू धारा बनकर इन आंखों से
मेरी उन्हे रोक पाना अपने हाथो से
शयाद खुदा के बस की बात नहीं
पर नादान दिल को कौन समझाए
इश्क़ करना हर किसी के बस की बात नहीं....
Comments
Post a Comment