अच्छाई की क़ीमत,
अच्छाई की क़ीमत,
चुका रहा हूं मैं ज़िंदगी में अपनी,
अच्छाई मेरी मकसद है ज़िंदगी का,
भला सबका सोचता रहा खुद के सिवा,
मुंह मिया मिठू बनकर लोग,
क़ीमत चुकाते है अक्सर मेरी,
पीठ पीछे मुझे हमेशा बुराई मिलती है,
ना जाने कैसी दौलत कमाई मैंने,
अच्छाई करते करते ज़िंदगी में अपनी....
Comments
Post a Comment