कौन हिसाब रखे,
कौन हिसाब रखे
खुदा की रहमतों का,
जब देता है सबको
तो बेहिसाब देता है,
छोटा पड़ जाता है
दामन उस फ़कीर का
भी जो दुआ सबको
सुबह और शाम देता है,
वो कभी हिसाब नहीं
रखता मेरी मन्नतों का,
हिसाब तो बंदे रखते
उसके जो खर्चा
फरियादो पर होता है,
हिसाब तो क़ीमत का
रखा जाता है जनाब,
जो देता है खुले हाथ
उसका रहमतों का,
हिसाब कौन रखे.....
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