तन्हाई मेरा हाथ न छोड़
तन्हाई मेरा हाथ न छोड़
सफ़र जिंदगी का अधूरा है अजनबी हूं इस शहर में,
तेरे अलावा जज़्बात मेरे यहां समझता कौन है,
खुदगर्ज है ये दुनियां बड़ी, जहां रहता हर कोई मोन है,
जख्मों को कुरेदकर यहां नासूर बनाया जाता है,
पीठ पीछे निंदा करना यहां सभी का काम है,
तन्हाई मेरी ज़िंदगी की पहचान बन गई है,
रुसवाई मेरा साथ न छोड़ बदनामी में जीने की,
अब मुझे आदत सी हो गई है......
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